रविवार, 3 फ़रवरी 2019

सप्तरुचिलु युगादि पच्चड़ि - वाणी गीत

वाणी गीत
सप्तरुचिलु युगादि पच्चड़ि विक्रमी सम्वत के चैत्रादि नववर्ष पर्व 'युगादि' - जोकि दक्षिण भारत, विशेषकर आंध्र, तेलंगाना, व कर्नाटक राज्यों में नववर्ष उगादि के नाम से मनाया जाता है -  पर बनाई जाने वाली विशेष चटनी है।

दादी के हाथों की सप्तरुचिलु युगादि पच्चड़ि के स्वाद की स्मृति भर रही है। सात प्रकार के स्वाद युक्त होने के कारण ही यह नाम पड़ा है। यह कैसे बनती है, पता नहीं था। अनुराग शर्मा, हंसराज सुज्ञ, और सलिल वर्मा ने विधि पूछी तो भाभी इंदिरा जोशी से पूछकर साझा कर रही हूँ...

सप्तरुचिळु बनाने की विधि

युगादि पच्चड़ि चित्र: सूर्या शर्मा (पिट्सबर्ग)‌
सामग्री

कच्चे आम (केरी)
इमली
गुड़
नमक
लाल मिर्च पिसी हुई
नीम के फूल / मञ्जरी
शहद


विधि

केरी को कद्दूकस से कस लें, या बारीक टुकड़ों में काटें। इमली को पानी में भिगोकर बीज निकालकर गाढ़ा घोल (पल्प) बना लें। गुड़ के बारीक टुकड़े कर लें।

अब सभी सामग्री को शहद मिलाते हुए चम्मच से अच्छी तरह मिला लें। चटनी तैयार है।

युगादि पर भीगी हुई मूंग की दाल में आम (केरी) के कटे टुकड़े, नमक, मिर्च आदि मिलाकर भोग बनाया जाता है. साथ ही गुड़ का सादा पानी और सप्तरुचिलु चटनी भी भोग अर्पण कर प्रसाद रूप में ली और वितरित की जाती है।

इस उगादि नव वर्ष (युगादि 2019) पर बनायें। खायें खिलायें और रेसिपी तस्वीर सहित साझा भी करें।
कुछ सुझाव हों तो उन्हें भी साझा करें।



सोमवार, 23 मई 2016

दद्दोजनम दधिभात - आंध्र की विशेषता

आज हम आपके लिये लाये हैं, आंध्रप्रदेश का एक खाद्य जो विशेषकर वहाँ के ब्राह्मण समुदाय का प्रिय भोजन है।

दद्दोजनम्
सामग्री:
चावल
ताज़ा दही
दूध
कटी हुई हरी मिर्च
तोडी हुई लाल मिर्च
काली मिर्च के दाने
करीपत्ता
अदरख के टुकडे, या कुचली हुई अदरख
जीरा
चने की दाल
उडद की दाल
सरसों के दाने
काजू
नमक
तेल या घी, रुचि के अनुसार

 विधि:
1) चावल उबालकर ठंडे कर लीजिए
2) उबले चावलों में नमक और ताज़ा दही मिलाकर दधिभात तैयार कर लीजिये
3)  दूध गर्म करके उसे दधिभात में मिला लीजिये
4) तडका या छौंकन तैयार करने के लिये तेल या घी को एक छोटे पात्र में मध्यम आंच पर गरम कीजिये
5) गर्म तेल में चने और उडद की दाल को भून लीजिये, और अब इसमें लाल मिर्च, सरसों के दाने, काली मिर्च, और करीपत्ता भी मिला लीजिये
6) इसी समय काजू भी मिलाये जा सकते हैं
7) छौंकन में अदरख और हरी मिर्च मिलाकर आंच को बंद कर दीजिये
8) दधिभात को छौंक दीजिए

आपका दद्दोजनम भोग लगाने के लिये तैयार है।

[चित्र व आलेख: अनुराग शर्मा :: Article and photographs: Anurag Sharma]

शनिवार, 24 जनवरी 2015

मुगर्रे - बरेली की नमकीन

बरेली के मुगर्रे, पिट्सबर्ग की रसोई से - इन्टरनेट पर पहली बार

एक दिन यूं ही बैठे-बैठे मुगर्रे खाने का मन किया तो फेसबुक पर एक शब्द का स्टेटस लिखा, "मुगर्रे"। अब यहाँ पित्त्स्बर्ग में मुगर्रे नहीं मिले, यह तो स्वाभाविक सी बात है लेकिन जब इन्टरनेट पर ढूँढना शुरू किया तब बहुत निराशा हुई। मिलना तो दूर, गूगल और बिंग जैसे खोज इंजनों को उनका नाम भी नहीं पता, न रोमन में, न नागरी में। जब मित्रों को बताने के लिए मुगर्रों का चित्र ढूँढना चाहा, तो फिर से वही बेबसी का आलम है। पूरे इन्टरनेट पर रत्ती भर भी जानकारी नहीं। नसीब वाले हैं वे जो रूहेलखण्ड (या अमृतसर) में रहे और वहाँ के मुगर्रे (या मूंगरे) का नाम और स्वाद जानते हैं। रूहेलखण्ड क्षेत्र के मित्रों को चाहिए था कि बरेली-बदायूँ के आला दर्जे के मुगररों का चित्र लगाते ताकि मित्र लोग पहचान पते।

कुछ मित्रों ने वर्णन के आधार पर उन्हें बूंदी समझा। अधिक स्पष्टीकारण के बाद कुछ नमकीन बूंदी तक पहुंचे। हक़ीक़त यह है कि मुगर्रों का बूंदी से कोई वास्ता नहीं होता। बूंदी ठोस, चिकनी छोटी, बेमसाला और समान आकार की होती है जबकि मुगररे खस्ता, हल्के, मसालेदार, नमकीन, मोटे, और अनियमित आकार के होते हैं। निष्कर्ष यह निकाला कि नमकीन बूंदी में भी सोडा प्रयोग होता है और वह भी छोटे छोटे छेद से बन जाने के कारण खस्ता और करारी बन जाती है, परन्तु वह है एक भिन्न पकवान।

अतुल शर्मा से बात होने पर पता लगा कि बरेली, बदायूं के अलावा उन्होने अमृतसर में भी मुगर्रे खाये हैं जिन्हें वहाँ मूंगरे कहा जाता था। एक फेसबुक मित्र ने जापान से बताया कि उन्हें बचपन में इनका सबसे आसान नाम बेसन के आलू लगता था।

फाइनली, दिल्ली में मम्मी से बात करके बनाने की विधि पूछी। इसी बीच भाई श्री नीरज हरि पाण्डेय ने भी सामाग्री और विधि भेज दी। दोनों ने जैसे बताया उस प्रकार से पिट्सबर्ग की रसोई में मुगर्रे बनाए गए। मुगररे में मोटा बेसन प्रयोग होता है साथ ही थोड़ा मोयन भी पड़ता है (घी या रिफाइंड)जो भी प्रयोग करें थोड़ा गर्म। मीठा (खाने वाला) सोडा का प्रयोग उसके खस्तेपन के लिए।

मुगर्रा (बहुवचन मुगर्रे) = बेसन का बना एक नमकीन पदार्थ। बरेली-बदायूं में नमकीन के अंग के रूप में और स्वतंत्र रूप से भी खाया जाता है।

सामग्री:
मोटा बेसन, साबित काली मिर्च, हींग, नमक
घी (या उचित विकल्प, रिफाइंड तेल आदि)
उचित पात्र यथा कढ़ाई, तसला और दो करछुली (कड़छी), एक बड़े छेद वाली, बेसन घी में डालने के लिए और दूसरी बने हुए मुगर्रे कढ़ाई से निकालने के लिए

विधि:
1) मोटे बेसन में काली मिर्च, हींग और नमक को स्वादानुसार मिला लीजिए
2) इस चूर्ण में पानी मिलाकर हमवार घोल बना लीजिये
3) घी को एक पात्र में गरम करके बेसन के घोल में मोयन के रूप में मिला लीजिये
4) एक कढाही में पाक माध्यम के लिए समुचित मात्रा में घी या तेल गरम कीजिये
5) सही तापक्रम आने पर कढ़ाई के ऊपर मोटे छिद्रों वाली कढ़छी या छलनी द्वारा बेसन के घोल को मोटी-मोटी एकसार बूंदों के रूप में गरम घी में गिराते रहिए
6) अच्छी तरह भुने हुए मुगर्रों को दूसरी करछुली से निकालकर एक बर्तन में रखते जाइए।

खाने योग्य तापक्रम पर आने पर मुगर्रों को चाय और नमकीन के साथ परोसिए और आनंद लीजिये इस डिश का, जिसे हम आपके लिए पहली बार इन्टरनेट पर लेकर आए हैं।

[चित्र व आलेख: अनुराग शर्मा :: Article and photographs: Anurag Sharma]